पीरियड्स क्या होता है? मासिक धर्म की जानकारी

नमस्ते दोस्तों, कैसे हो आप? आज का हमारा विषय है पीरियड्स क्या होता है? मासिक धर्म की जानकारी,भगवान ने दुनिया बनाते समय स्त्री और पुरुष दोनों का निर्माण किया। लेकिन, ऐसा कहा जाता है; कि भगवान ने एक स्त्री को बनाने के लिए काफी वक्त लगाया था; तब जाकर एक स्त्री का निर्माण भगवान कर पाया है। अगर एक स्त्री को बनाने के लिए भगवान को इतनी मशक्कत करनी पड़ सकती है; तो स्त्री का महत्व समाज में हम जान हीं सकते हैं। लेकिन, स्त्रियों के बारे में बहुत सारे लोग आज भी कम ही जानते हैं। स्त्री और पुरुष जेनेटिकली एक-दूसरे से काफी अलग होते हैं। माहवारी को मासिक धर्म, पीरियड्स, मेंस्ट्रूअल साइकिल के नाम से जाने जाते हैं। 

आज भी समाज में माहवारी को लेकर काफी गलत धारणाएं मौजूद है। गांव में आज भी महिलाओं को पीरियड के दौरान छुआछूत की बातों को का सामना करना पड़ता है। जहां एक तरफ हम मां अंबे का सम्मान, पूजा करते हैं; वहीं दूसरी तरफ हम महिलाओं का अपमान करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। मासिक धर्म के दौरान शारीरिक पीड़ा के साथ-साथ, समाज से मिलने वाले बर्ताव से महिलाओं को मानसिक पीड़ा भी झेलनी पड़ती है। क्या होता है मासिक धर्म? इस बारे में आज भी कम ही लोग चर्चा करते हुए दिखाई देते हैं। तो दोस्तों, आज जानेंगे मासिक धर्म की पूरी जानकारी।

मासिक धर्म की जानकारी-

जब एक हंसती, खिलखिलाती लड़की महीनों के कुछ दिनों तक शांत और सहमी सी लगती है, तो वह माहवारी के दौर से गुज़र रही होती हैं। किशोरावस्था में जब पहली बार माहवारी शुरू होती हैं; तो लड़कियां पहले से ही डरी हुई होती हैं। क्योंकि, माहवारी के बारे में उसे पूरी जानकारी देने वाला कोई नहीं होता है। मासिक धर्म के बारे में आज भी लोग और महिलाएं बोलने से हिचकिचाते हैं। 

महिलाओं के शरीर में हार्मोन्स में आए बदलाव की वजह से गर्भाशय के अंदरूनी हिस्से से और गर्भाशय से होने वाले स्त्राव को मासिक धर्म कहा जाता है। लड़कियों में किशोरावस्था के दौरान ८-१६ वर्ष आयु तक किसी भी आयु में माहवारी शुरू हो सकती हैं। आमतौर पर १०-१३ वर्षों के बीच माहवारी शुरू हो जाती हैं। लड़कियों में मासिक धर्म किस वक्त पर शुरू होगा, यह काफी बातों पर निर्भर करती है। जैसे; जेनेटिकल रचना, खानपान की पद्धति, काम करने की पद्धति, जिस स्थान पर रहते हैं; वहां का हवामान आदि घटकों पर महावारी का चक्र निर्भर होता है। 

आमतौर पर, मासिक धर्म महीने में एक बार आता है और एक मेंस्ट्रूअल साइकिल २८-३२ दिनों की होती है। मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को पेट में दर्द, कमर दर्द, पेट की मांसपेशियों में ऐंठन, डायरिया, उल्टी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसी के साथ, महावारी के दौरान महिलाओं में ज्यादा खाना खाने की इच्छा होती है। मासिक धर्म आने से पहले भी कुछ लक्षण देखने को मिलते हैं; जैसे, पेट में ऐठन, पेट दर्द होता है।

मासिक धर्म पहली बार कैसे आता है-

किशोरावस्था में पहुंचने के बाद लड़कियों का अंडाशय प्रोजेस्ट्रोन और इस्ट्रोजेन हार्मोन्स सीक्रेट करने लगते हैं। यह हार्मोन सीक्रेट होने के बाद हमारे गर्भाशय की परत महीने में एक बार मोटी होने लगती है। यह मोटी परत गर्भाशय को गर्भावस्था के लिए तैयार करती हैं। आमतौर पर, कोई लड़की माहवारी के दौरान शारीरिक संबंध नहीं बनाती है; तो गर्भाशय की मोटी परत जो गर्भावस्था के लिए तैयार हो रही थी, वह टूटकर रक्तस्त्राव के रूप में बाहर निकल जाती हैं। इस प्रक्रिया को ही “मासिक धर्म” कहा जाता है।

महीने में यह पूरा चक्र २८-३२ दिनों में सामान्यतः एक बार जरूर होता है। माहवारी के दौरान हर लड़की के शरीर में हार्मोन्स में काफी बदलाव देखने को मिलते हैं। यह हार्मोंस के बदलाव शरीर को स्वस्थ बनाने के लिए उपयुक्त होते हैं और गर्भावस्था के लिए यह गर्भाशय को तैयार करते हैं। कई महिलाओं में मासिक चक्र नियमित नहीं होता है। उनको कई शारीरिक बीमारियों की वजह से हार्मोनल इंबैलेंस हो जाता है; जिस वजह से मासिक चक्र अनियमित होता है। 

मासिक धर्म के दौरान शरीर में होने वाला परिवर्तन-

मासिक धर्म के दौरान महिलाओं के शरीर में कई सारे परिवर्तन देखने को मिलते हैं।

१) हार्मोनल परिवर्तन-

मासिक धर्म के दौरान सबसे पहले महिलाओं में हार्मोनल बदलाव देखने को मिलते हैं। लेकिन, यह हार्मोनल बदलाव उनके शरीर को स्वस्थ रखने के लिए बहुत ही उपयुक्त होते हैं। मासिक धर्म के शुरुआती दिनों में एस्ट्रोजन नामक हार्मोन बढ़ने लगता है; जो शरीर को स्वस्थ रखने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। इस हार्मोन की वजह से हड्डियां मजबूत होने में मदद मिलती है। इसी के साथ, यह एस्ट्रोजन हार्मोन गर्भाशय के अंदरूनी दीवार पर टिश्यूज़ और रक्त की एक मखमली मोटी परत बनाता है। एक तरह से गर्भाशय को गर्भावस्था के लिए तैयार करता है; ताकि भ्रूण गर्भाशय में अच्छी तरह से विकसित हो पाए।

२) ब्लीडिंग-

महावारी के दौरान ब्लीडिंग होना काफी आम होता है। हमें लगता है, कि माहवारी के दौरान होने वाले बिल्डिंग में सिर्फ रक्त होता है। लेकिन, यह कुछ हद तक गलत है। उसमें नष्ट हो चुके टिशूज भी मौजूद होते हैं; जो शरीर से बाहर निकाले जाते हैं। अक्सर लोगों के मन में सवाल आता है, कि महावारी के दौरान कितना ब्लीडिंग होना चाहिए; जिसे सामान्य माना जाए। देखा जाए, तो माहवारी के दौरान होने वाले बिल्डिंग में रक्त की मात्रा लगभग ४०-५०% की होती है।

३) ओवुलेशन-

महावारी के महावारी के १३-१४ वे दिन ओवुलेशन होता है। कुछ कारणों से यह आगे पीछे हो सकता है। महिलाओं के अंडाशय से एक विकसित अंडा डिंब निकल कर फैलोपियन ट्यूब तक पहुंचता है, इस प्रक्रिया को “ओवुलेशन” कहते हैं। संतान प्राप्ति के चक्र में यह प्रोसेस बहुत ही महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। ओवुलेशन के दौरान महिलाओं के जननांगों में ब्लड सरकुलेशन बढ़ जाता है। एस्ट्रोजन हार्मोन अधिक मात्रा में स्त्रावित होता है। इसीलिए, इस दौरान महिलाओं में सेक्सुअल डिजायर भी बढ़ जाता है। ओवुलेशन के दौरान शारीरिक संबंध बनाने से प्रेग्नेंट होने के चांसेस बढ़ जाते हैं।

४) अंडा-

फैलोपियन ट्यूब में अंडा अगर स्पर्म से फर्टिलाइज हो जाए, तो भ्रूण का विकास शुरू हो जाता है। अगर ऐसा ना हो, तो लगभग १२ घंटे बाद अंडा खराब हो जाता है और एस्ट्रोजन का स्तर भी कम होने लगता है। गर्भाशय की मोटी परत जो ब्लड और टिशूज जब से बनी होती है; उसकी जरूरत खत्म हो जाती है। यही मोटी परत नष्ट होने के बाद योनि मार्ग से बाहर निकल जाती हैं और फिर से आपके पीरियड्स शुरू हो जाते हैं। हर महीने में यह चक्र सामान्य तौर पर होता ही रहता है।

मासिक धर्म के दौरान होने वाली तकलीफें-

मासिक धर्म के दौरान महिलाओं में कई परेशानियां देखने को मिलती है। हर महिला का मासिक धर्म अलग-अलग होता है और उनकी परेशानियां भी अलग-अलग होती हैं। कई महिलाओं में रक्तस्राव ज्यादा देखने को मिलता है, तो कहीं कम। कई महिलाओं का मासिक चक्र लंबे समय तक चलता है, तो कईयों का काफी कम समय तक। 

१) रक्तस्राव-

कई महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान रक्त स्त्राव काफी कम मात्रा में होता है। ऐसे में, उन्हें लगता है; कि उनका गर्भाशय पूरी तरीके से साफ नहीं हुआ है। 

वहीं दूसरी ओर, कई महिलाओं को माहवारी के दौरान ज्यादा ब्लीडिंग देखने को मिलते हैं। सामान्य तौर पर, हार्मोनल बदलाव होने की वजह से यह समस्या हो सकती हैं। लेकिन, दिन में ज्यादा बार पैड बदलने की जरूरत पड़ रही हो और खून की कमी की समस्या आ रही हो; तो आप तुरंत अपने डॉक्टर से उचित सलाह जरूर लें। वैसे तो, रक्तस्त्राव कम होने पर या ज्यादा होने पर डॉक्टर से सलाह जरूर लेनी चाहिए।

२) मासिक धर्म से पहले तनाव-

लगभग सभी महिलाएं मासिक धर्म से तीन-चार दिन पहले से तनावग्रस्त रहते हैं और मासिक धर्म शुरू होने के बाद यह तनाव नष्ट हो जाता है। चिड़चिड़ाहट, पैरों में सूजन, स्तनों में दर्द, कब्ज, ज्यादा पेशाब होना, थकान महसूस आना आदि लक्षण हार्मोनल बदलाव से हो सकते हैं। इसी कारण, तनाव आ जाता है। पानी, चाय, कॉफी तथा खाने में नमक की मात्रा कम कर लेने से इस तनाव से छुटकारा मिल पाता है।

३) दर्द एवं ऐठन-

माहवारी के दौरान महिलाओं तथा लड़कियों को पेट में दर्द, कमर दर्द, पैरों में सूजन, मांसपेशियों में ऐंठन जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यह समस्या हेवी ब्लड फ्लो होने के दौरान होती हैं और ब्लड फ्लो कम होने के साथ-साथ कम होती जाती हैं। महावारी के दौरान यह समस्याएं काफी आम मानी जाती है। ज्यादा तकलीफ होने पर आप डॉक्टर की सलाह ले सकते हैं।

दोस्तों, एक बच्चे को जन्म देने के लिए मासिक धर्म बहुत बड़ी भूमिका निभाता है। मासिक चक्र के दौरान हैं भ्रूण तैयार होता है और एक महिला ९ महीने के बाद बच्चे को जन्म देती है। इसीलिए, मासिक धर्म को अहमियत देना जरूरी हो जाता है। मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को होने वाली तकलीफों के बारे में जानकारी पाना बहुत ही आवश्यक होता है। इससे हमें महिलाओं की जरूरत के बारे में पता चलता है। माहवारी के दौरान लड़की या महिला को घर के सदस्यों की सपोर्ट की आवश्यकता होती है। समाज में माहवारी के बारे में जागरूकता निर्माण करने के लिए इस बात को समझना जरूरी हो जाता है। मैं भी एक महिला हूं और मासिक धर्म के दौरान परिवार के सपोर्ट की कितनी आवश्यकता होती है; इस बात को अच्छे से समझ सकती हूं।

तो दोस्तों, आज के लिए बस इतना ही। आज का टॉपिक बहुत ही आवश्यक और महत्वपूर्ण था। उम्मीद है, आपको आज का पीरियड्स क्या होता है? मासिक धर्म की जानकारी यह ब्लॉग अच्छा लगा हो और काफी इंफॉर्मेशन दे पाया हो। धन्यवाद।

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