लोध्र (लोध) के गुण हिंदी में जानकारी

लोध्र का रुख से उत्तरी तथा पूर्वी भारत में पाया जाता है | इसके फल सुगंधी और पीले रंग के होते हैं | इसमें लगने वाला फल अंडाकार और आधा इंच लंबा होता है | इसकी छाल धूसर रक्तवर्ण की होती है | इसकी छाल व पत्तों में रंग निकला जाता है |
इसकी छाल शीतल ,कसैली ,पाचन में हल्की ,नेत्रों और मसूड़ों के रोगों में लाभकारी होती है | कफ , पित्त , अतीसार रक्तपित्त ,सूजन पुष्प रोग , गर्भपात ,प्रदर रोग तथा गर्भस्राव में यह उपयोगी है | त्वचा रोगों में लोध्र का उपयोग किया जाता है |अतिसार और रक्तातिसार में इसका प्रयोग किया जाता है |
लोध्र का घरेलू उपाय :
आंखों की सूजन ;
सूजन और लाली दूर करने के लिए आंखों की पलकों पर पठानी लोध का लेप करने से लाभ होता है |
वर्ण :
लोध्र का चूर्ण वर्ण पर छिड़कने से वर्ण ठीक होकर शीघ्र नई त्वचा आ जाती है |
प्यास , आमातिसार :
लोध्र के पत्तों का कल्क बनाकर ,उसे घी में सेंककर तथा शक्कर मिलाकर उसकी पूरी बनाकर खाने से तृषा ,कास व आमातिसार रोग दूर होते हैं |
नेत्र विकार :
पठानी लोध की छाल के चूर्ण को घी में भूनकर के चारों और छुपाने से सभी प्रकार के नेत्र विकार दूर होते हैं |
श्वेत प्रदर :
श्वेत प्रदर में पठानी लोध का प्रयोग उपयोगी होता है |
कील मुंहासे :
लोध्र ,सरसों व व सेंधा नमक मिलाकर पानी के साथ पीसकर चेहरे पर लेप लगाकर कुछ देर बाद रगड़ कर छुड़ा दें | इससे कील-मुंहासे मिटते हैं |
गर्भपात :
गर्भपात की आशंका होने पर लोध्र और पीपल का चूर्ण 1 ग्राम शहद के साथ चाटने से लाभ होता है | सातवें तथा आठवें माह में गर्भपात का अंदाजा होने पर केवल पठानी लोध का चूर्ण शहद के साथ चाटने से लाभ होता है तथा गर्भाशय की शिथिलता दूर होती है |
योनिक्षत :
प्रस्तुति काल में योनि में क्षत हुआ हो तो तुम्बी के पत्रों का चूर्ण और पठानी लोध का चूर्ण समभाग लेकर योनी में लेप लगाए |
रक्तप्रदर :
पठानी लोध का चूर्ण और मिश्री 1-1 ग्राम मिलाकर ठंडे पानी के साथ तीन -तीन घंटे के अंदर में चार-पांच दिन तक लेने से रक्तस्राव बंद हो जाता है |
मसूड़े :
पठानी लोध का काढ़ा बनाकर इसे सुबह शाम कुल्ला करने से मसूड़ों से रक्त आना बंद हो जाता है |
सूजन घाव :
लोध्र का बारीक पाउडर शहर में मिलाकर लगाने से सूजन और घाव ठीक हो जाता है |
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