जटामांसी का नामकरण जटायुक्त मांसल कंद वाली होने के कारण किया गया है| अधिक रोए वाली होने से इसे सुलोमशा तथा सुगंधित होने से नलदा भी कहते हैं|
जटामांसी का उपयोग

इसमें उड़नशील तेल होता है| यह तेल हल्के पीले रंग का , हल्का , हवा में जमने वाला कड़वा व तित्क होता है|
जटामांसी का उपयोग मानसिक दुर्बलता और विकार दूर करने में किया जाता है | इसका सेवन करने से मन की चंचलता कम होती है , एकाग्रता बढ़ती है तथा काम करने में उत्साह की अनुभूति होती है | यह केशववर्द्धक , ज्वर और त्वचा रोग नाशक , ह्रदय को बलदायक , भूख बढ़ाने वाली सभी त्रिदोषों का शमन करने वाली और नाडी को बल देने वाली है |
जटामांसी के घरेलू उपाय :
सिर दर्द :
जटा मांसी ,वच और ब्रह्मी तीनों का चूर्ण दो 2 ग्राम लेकर शहद में मिलाकर लेने से वात प्रकोप से होने वाला सिरदर्द दूर हो जाता है |
उदर विकार :
जटा-मांसी , इलायची और नौसादर समभाग लेकर पीस ले इसे| 3 ग्राम की मात्रा में शहद में मिलाकर दिन में दो बार खाने से आराम होता है , तथा पाचन क्रिया ठीक हो जाती है |
वर्ण :
घाव और वर्ण शोध पर जटामांसी का तेल लगाने से घाव ठीक हो जाता है |
बाल झड़ना :
100 ग्राम जटामांसी का चूर्ण 400 मिली तिल के तेल में डालकर उबालें इस तेल को प्रतिदिन बालों में लगाने से बाल झड़ना बंद हो जाते हैं |
प्रमेह :
जटामांसी का सेवन करने से मूत्र में शक्कर आना बंद हो जाता है |
मासिक धर्म अवरोध :
20 ग्राम जटामांसी और 10 ग्राम वच को बारीक पीसकर इसकर चूर्ण बना लें 2-2 माशा चूर्ण सुबह-शाम शहद के साथ सेवन करने से मासिक धर्म का अवरोध दूर हो जाता है |
रक्तविकार :
10 ग्राम जटा मांसी , मजीठ 20 ग्राम को कूटकर 125 मिली पानी में उबालें ठंडा करके दो भाग करें एक सुबह खाली पेट तथा दूसरा भाग रात को सोते समय नियमित रूप से कुछ दिन तक पानी से रक्त विकार नष्ट हो जाता है |
हिस्टीरिया :
20 ग्राम जटा मांसी और 10 ग्राम वच को बारीक पीसकर 2-2 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम शहद के साथ लेने से हिस्टीरिया पर हो जाता है|